Saptashati Nyasah | सप्तशती न्यासः | Meaning in Hindi and English
न्यासः दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय से पहले किया गया अन्तिम अनुष्ठान है। न्यास के अनुष्ठान के बाद दुर्गा सप्तशती के 700 श्लोकों में से पहला श्लोक प्रारम्भ होता है।
॥ सप्तशतीन्यासः ॥
तदनन्तर सप्तशती के विनियोग, न्यास और ध्यान करने चाहिये। न्यास की प्रणाली पूर्ववत् है- ॥ विनियोगः ॥
प्रथममध्यमोत्तरचरित्राणां ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः,श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, नन्दाशाकम्भरीभीमाः शक्तयः,रक्तदन्तिकादुर्गाभ्रामर्यो बीजानि, अग्निवायुसूर्यास्तत्त्वानि, ऋग्यजुःसामवेदा ध्यानानि, सकलकामनासिद्धये श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा गदिनी चक्रिणी तथा। शङ्खिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा॥अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। ॐ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे। भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि॥ मध्यमाभ्यां नमः। ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते। यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम्॥ अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ खड्गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणि तेऽम्बिके। करपल्लवसङ्गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः॥कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥ करतलकरपृष्ठाभ्यां।
ॐ खड्गिनी शूलिनी घोरा॰ – हृदयाय नमः। ॐ शूलेन पाहि नो देवि॰ – शिरसे स्वाहा। ॐ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च॰ – शिखायै वषट्। ॐ सौम्यानि यानि रूपाणि॰ – कवचाय हुम्। ॐ खड्गशूलगदादीनि॰ – नेत्रत्रयाय वौषट्। ॐ सर्वस्वरूपे सर्वेशे॰ – अस्त्राय फट्।
॥ ध्यानम् ॥
ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्। हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥
इसके बाद प्रथम चरित्र का विनियोग और ध्यान करके “मार्कण्डेय उवाच” से सप्तशती का पाठ आरम्भ करें। प्रत्येक चरित्र का विनियोग मूल सप्तशती के साथ ही दिया गया है तथा प्रत्येक अध्याय के आरम्भ में अर्थसहित ध्यान भी दे दिया गया है। पाठ प्रेमपूर्वक भगवती का ध्यान करते हुए करें। मीठा स्वर, अक्षरों का स्पष्ट उच्चारण, पदों का विभाग, उत्तम स्वर, धीरता, एक लय के साथ बोलना – ये सब पाठकों के गुण हैं।* जो पाठ करते समय रागपूर्वक गाता, उच्चारण में जल्दबाजी करता, सिर हिलाता, अपनी हाथ से लिखी हुई पुस्तक पर पाठ करता, अर्थ की जानकारी नहीं रखता और अधूरा ही मन्त्र कण्ठस्थ करता है, वह पाठ करनेवालों में अधम माना गया है।* जबतक अध्याय की पूर्ति न हो, तबतक बीच में पाठ बन्द न करें। यदि प्रमादवश अध्याय के बीच में पाठ का विराम हो जाय तो पुनः प्रति बार पूरे अध्याय का पाठ करें।* अज्ञानवश पुस्तक हाथ में लेकर पाठ करने का फल आधा ही होता है। स्तोत्र का पाठ मानसिक नहीं, वाचिक होना चाहिये। वाणी से उसका स्पष्ट उच्चारण ही उत्तम माना गया है।* बहुत जोर-जोर से बोलना तथा पाठ में उतावली करना वर्जित है। यत्नपूर्वक शुद्ध एवं स्थिरचित्तसे पाठ करना चाहिये।* यदि पाठ कण्ठस्थ न हो तो पुस्तक से करें। अपने हाथ से लिखे हुए अथवा ब्राह्मणेतर पुरुष के लिखे हुए स्तोत्र का पाठ न करें।* यदि एक सहस्र से अधिक श्लोकों का या मन्त्रों का ग्रन्थ हो तो पुस्तक देखकर ही पाठ करें; इससे कम श्लोक हों तो उन्हें कण्ठस्थ करके बिना पुस्तक के भी पाठ किया जा सकता है।* अध्याय समाप्त होने पर “इति”, “वध”, “अध्याय” तथा “समाप्त” शब्दका उच्चारण नहीं करना चाहिये।
Meaning in English:
॥ Saptashatinyasah ॥
Now nyasa shall be done with full concentration and dedication –
॥ Viniyogah ॥
Prathammadhamottaracharitranam Brahmavishnurudra Rishayah, Sri MahakaliMahalakshmiMahasaraswatyo Devataah, Gayatriushniginushtubhchandansi, nandashakambharibhimaah shaktyah, raktadantikadurgabhramaryo bijani, agnivayusuryaastvani, Rigyajuhsaamveda meditation, Sakalakamansiddhaye shri mahakali mahalaxmimahasaraswatidevatapreetiarthe jape viniyogah|
Om Khadagini Shoolini Ghora Gadini Chakrani tatha Shankhini chaapini baanabhushundiparighayudha॥ angusthabhayam namah|
Om Shoolen Pahi No Devi Pahi Khadgen Chambike Ghantaswanen nah pahi chapajyanihswanen cha॥ tarjanibhayam namah|
Om Praachyaam Raksh Prateechyaam cha Chandike Raksh Dakshine Bhramanenaatmashoolasya uttarasyaam thatheshwari॥
Madhyamaabhyaam Namah|
Om Soumyani yaani Rupani Trailokye Vicharanti Te Yaani Chaatyarthghorani tai rakshasmanstatha bhuvam॥ Anamikabhayam Namah|
Om Khadgashulagadadini yaani Chaastraani Te Ambike Karpallavsangini tairasman raksh sarvatah॥ Kanishthabhyaam namah|
Om Sarvarupe Sarveshe Sarvashakti-Samanvite Bhayebhyastrahi no devi durge devi namoastu te॥ Kartalkarprishthabhyaam|
Om Khadagini Shoolini Ghora॰ – Hridayaye Namah| Om Shoolen pahi no devi॰ – Shirse Swaha|
Om Praachyam raksh prateechyaam ch – Shikhayay vashat|
Om Saumani yaani Rupani – Kavachayay Hum|
Om Khadagashulagadadini – Netratrayaya Vaushat|
Om Sarvaswaroopey Sarveshe – Astraayay fat|
॥ Dhyanam ॥
Om Vidyuddamsamprabham Mrigpatiskandhsthitaam bheeshanaam Kanyabhih Karwalkhetvilsaddhastabhirasevitaam| Hastaishchakragadasikhetvisikhanshchaapam gunam tarjaneem Bibhraanaamanlaatmikaam Shashidharaam Durgaam Trinetram Bhaje॥
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