Durga Saptashati Patha Vidhi
दुर्गा सप्तशती की शुरुआत से पहले जिन अनुष्ठानों का पालन किया जाना चाहिये, वे पाठविधि का हिस्सा हैं। संकल्प पूजा विधि का एक हिस्सा है। इसके बाद कवचम्, अर्गला, कीलकम् और अन्य स्तोत्रम् भी पूजा विधि में शामिल है। कवचम्, अर्गला, कीलकम् और तीन गुप्त स्तोत्रम् दुर्गा सप्तशती के छह अलग-अलग अंग माने गये हैं।
साधक स्नान करके पवित्र हो आसन-शुद्धि की क्रिया सम्पन्न करके शुद्ध आसन पर बैठे; साथ में शुद्ध जल, पूजन-सामग्री और श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक रखे। पुस्तक को अपने सामने काष्ठ आदि के शुद्ध आसन पर विराजमान कर दे। ललाट में अपनी रुचि के अनुसार भस्म, चन्दन अथवा रोली लगा ले, शिखा बाँध ले; फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्त्व-शुद्धि के लिये चार बार आचमन करे। उस समय अग्रांकित चार मन्त्रों को क्रमशः पढ़े-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
तत्पश्चात् प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें;
फिर ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसवः उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः।
तस्यते पवित्रपते पवित्रपूतस्ययत्कामः पुने तच्छकेयम्॥
इत्यादि मन्त्र से कुशकी पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः।
ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकायने महामाङ्गल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ सकलशास्त्रश्रुतिस्मृति-पुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकनाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्वविधपीडा-निवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुःपुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्रीनवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्ट-फलावाप्तिधर्मार्थकाममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्सरं कवचार्गलाकीलकपाठवेदतन्त्रोक्त-रात्रिसूक्तपादेव्यथर्वशीर्षपाठन्यास-विधिसहितनवार्णजपसप्तशतीन्यासध्यानसहित-चरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च “मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।” इत्याद्यारभ्य “सावर्णिर्भविता मनुः” इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च करिष्ये।
इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवी का ध्यान करते हुए पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें, योनिमुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करें, फिर मूल नवार्णमन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें।* इसके बाद शापोद्धार* करना चाहिये। इसके अनेक प्रकार हैं।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यैशापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा।
इस मन्त्र का आदि और अन्त में सात बार जप करे।
यह शापोद्धार मन्त्र कहलाता है।
इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जप किया जाता है।
इसका जप आदि और अन्तमें इक्कीस-इक्कीस बार होता है।
यह मन्त्र इस प्रकार है- ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिकेउत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।
इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जप करना चाहिये, जो इस प्रकार है-
ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्येमृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।
मारीचकल्पके अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है- ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभयमोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।
इस मन्त्र का आरम्भ में ही एक सौ आठ बार जाप करना चाहिये, पाठ के अन्त में नहीं।
अथवा रुद्रयामल महातन्त्र के अन्तर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका-शाप-विमोचन मन्त्रों का आरम्भ में ही पाठ करना चाहिये।
वे मन्त्र इस प्रकार हैं- ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः।
ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥1॥
ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥2॥
ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥3॥
ॐ क्षुं क्षुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥4॥
ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥5॥
ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥6॥
ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥7॥
ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥8॥
ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥9॥
ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥10॥
ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥11॥
ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥12॥
ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥13॥
ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥14॥
ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥15॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥16॥
ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥17॥
ॐ ऐं ह्री क्लीं महाकालीमहालक्ष्मी- महासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः॥18॥
इत्येवं हि महामन्त्रान् पठित्वा परमेश्वर। चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः॥19॥
एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः। आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः॥20॥
इस प्रकार शापोद्धार करने के अनन्तर अन्तर्मातृका-बहिर्मातृका आदि न्यास करे, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताये अनुसार नौ कोष्ठोंवाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करे, इसके बाद छः अंगोंसहित दुर्गासप्तशती का पाठ आरम्भ किया जाता है। कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य- ये ही सप्तशती के छः अंग माने गये हैं। इनके क्रम में भी मतभेद हैं। चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है।* किंतु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गई है। जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवचरूप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलकरूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिये।* यहाँ इसी क्रम का अनुसरण किया गया है।
Meaning in English:
Sadhaks should be pure after taking bath and after completing the asana-purifichation process, sit on a pure seat; Keep pure water, worship material and the book of Shri Durgasaptshati with you. Make the book sit in front of you on a pure seat made of wood. Apply ash, sandalwood or rosary according to it, tie the crest; Then facing east, pray four times for the purification of the essence. At that time recite the following four mantras respectively –
om ain aatmatattvan shodhayaami namah svaaha | om hreen vidyaatattvan shodhayaami namah svaaha | om keen shivatattvan shodhayaami namah svaaha | om ain hreen keen sarvatattvan shodhayaami namah svaaha | After that, by doing Pranayama, Ganesha etc.
salute the teachers; Then ‘Pavitra Stho Vaishnavyu’ with mantras wearing the purity of Kush, take red flowers, akshat and water in your hands and make a resolution as follows –
Say three times – ॐ विष्णुः, विष्णु, विष्णुः। and then ‘ॐ नमः परमात्मने’ Further say – By the order of Shri Purushottam Shri Vishnu, in the second half of the current Shri Brahma, in the first phase of the twenty-eighth Kali Yuga of Vaivasvata Manvantara, in the first phase of the twenty-eighth Kaliyuga, under the Aryavarta in the month of Aryavarta, in one of the virtuous states of Brahmavarta and in Uttam Paksha.
“The date”, consisting of the day and the Sun located in the constellation in the constellation and the signs of the Moon, Earth, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn in the zodiac, in auspiciousness, in auspiciousness, with such special qualities, on a specific auspicious death date, I, “your full name”, son of “father’s name”, from the clan “gotra name”, have attained the fruits of what has been said in all the scriptures, Shrutis, Smritis and Puranas.
For the retirement of all the objections from the offerings of Srinavdurga and the attainment of all the desired results and Dharma-arth-kama-moksha – by the accomplishment of these fourfold efforts, for the love of Shri Mahakali Mahalaxmi and Mahasaraswati Devatas, with a cursed armor, Argala, Keelaka recitation and Vedatantra, the above-mentioned Ratisuktapath, Devyatharva Shirshapath and Naptvasati.
With respect to the character’s appropriation and trust, and with meditation, I will do recitation of Durga Saptashati, followed by Navarnajapa with Nyasavidhi, recitation of Vedatantrokta Devi Sukta, recitation of Rahasatraya, Shapoddhar etc. In this way, while meditating on the Goddess, worship the book by the method of Panchopchar, worship the Goddess by performing the Yonimudra.
And in the end chant seven times ‘Om Hreem Kreem Shree Kram Kreem Chandikadevyai Shapanasanugraham Kuru Kuru Swaha’. This is challed Shapoddhara Mantra. After this, the Utkilan mantra is chanted. It is chanted at the beginning and in the end twenty-one twenty-one times.
This mantra is as follows- – ‘Om Shri Ki Hrin Saptashati Chandike Utkilanam Kuru Kuru Swaha.‘ After this chanting should be done seven times in the beginning and last seven times, which is as follows – ‘Om Hreem Vam Aim Aim Mritsanjeevani Vidya Mrityuthappyuthapaye kri hreem hreem v swaha.
‘ According to Marichakalpa, this is the mantra of Saptashati-Shap release – ‘Om Shri Shri ki o Aim Kshobhaya Mohaya Utkilay Utkilay Utkilay thumth.’ This mantra should be chanted one hundred and eight times in the beginning itself, not at the end of the recitation. Or Rudrayamal Mahatantrake, Under this, Chandika-Chapse-Removal Mantras, said in Durga Kalpa, should be recited at the very beginning.
‘Om’ Brahma, Vasistha, Vishwamitra related curse of this Srichandika, Vasistha of the mantra and Narada, the sage Brahma, the ruler of the interactive Samaveda, is the deity Sridurga. The three characters of Durga are the seeds, ‘Hreem’ is the power, it is used in chanting for the accomplishment of the work done by her in the curse of the Trigunatmaswarupini Chandika.
Those mantras are like this – ‘Om (hrīṁ) rīṁ rēta: Svarūpiṇyai madhukaiṭabhamardin’yai brahmavasiṣṭha – viśvāmitraśāpād vimuktā bhava|1| ‘Om śrīṁ bud’dhisvarūpiṇyai mahiṣāsurasain’yanāśin’yai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|2| ‘Om raṁ raktasvarūpiṇyai mahiṣāsuramardin’yai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|3| ‘Om kṣu kṣudhāsvarūpiṇyai dēvavanditāyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|4| ‘Om chāṁ chāyāsvarūpiṇyai dūtasanvādin’yai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|5| ‘Om śaṁ śaktisvarūpiṇyai dhūmralōchanaghātin’yai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|6| ‘Om tr̥ tr̥ṣāsvarūpiṇyai chaṇḍamuṇḍavadhakāriṇyai brahmavasiṣṭha viśvāmitraśāpād vimuktā bhava|7| ‘Om kṣāṁ kṣāntisvarūpiṇyai raktabījavadhakāriṇyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|8| ‘Om jāṁ jātisvarūpiṇyai niśumbhavadhakāriṇyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|9| ‘Om laṁ lajjāsvarūpiṇyai śumbhavadhakāriṇyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|10| ‘Om śāṁ śāntisvarūpiṇyai dēvastutyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|11| ‘Om śraṁ śrad’dhāsvarūpiṇyai sakalaphaladātryai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|12| ‘Om kāṁ kāntisvarūpiṇyai rājavarapradāyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|13| ‘Om māṁ mātr̥svarūpiṇyai anargalamahimasahitāyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|14| ‘Om hrīṁ śrīṁ duṁ durgāyai saṁ sarvaiśvaryakāriṇyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|15| ‘Om aiṁ hrīṁ kīṁ namaḥ śivāyai abhēdyakavachasvarūpiṇyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|16| ‘Om krīṁ kālyai kāli hrīṁ phaṭ svāhāyai r̥gvēdasvarūpiṇyai brahmavasiṣṭhaviśvāmitraśāpād vimuktā bhava|17| ‘Om aiṁ hrīṁ kīṁ mahākālīmahālakṣmīmahāsarasvatīsvarūpiṇyai triguṇātmikāyai durgādēvyai namaḥ|18|
Oh God! In this way, after reciting these great mantras, the reader of Chandi should be done day and night without any doubt. Those who do not know this mantra and does not recite these mantras but by reciting Chandika, he also harms himself and also harms the donor and the one who gets the recitation done.
There is no doubt about it. The armor of the Mahamantramay Saptashati has been challed the seed, the Argala as the Shakti and the Kaulak as the rivet. In this way, according to many systems, the sequence of the recitation of Samashti is available in many ways.
In such a situation, it is good to follow the order of the reader which is prevalent in the past tradition in your country. This method is given briefly here.
Elaborate method is used in rituals on special occhasions like Navratri etc and in Shatchandi etc. In it, the Yantrastha Kalash, Ganesha, Navagraha, Matrika, Vastu, Saptarishi, Saptachiranjeev, 64 Yogini, 50 Kshetrapal and other deities are worshiped according to the Vedic method. Akhand lamps are arranged. There are 3 ritualistic worship of the goddess Pratima with the method of agnyasa and fire uttaran etc.
Navadurga Puja, Jyoti: Worship, Batuk-Ganeshadis including Kumari Puja, Abhishek, 5 Nandishradh, Rakshabandhan, Punyavachan, Mangalpath, Gurupuja, pilgrimage, mantra bath etc., Asana Shuddhi, Pranayama, Bhoot Shuddhi, Pranapratishtha, Antarmatrikanyas, Sanyasyas, Hridayama, Sakthi, Sanyasas, Sthrityas, Sivakarma, Sanyasas, sannyasas, , Vilomanyas, Philosophy, Aksharnyas, Vyavasnyasya, Dhyana, rituals are performed according to the classichal method of Peetha Puja, Vishesarghya, Kshetrakilan, Mantra Puja, Miscellaneous Mudravidhi, Avaran Puja and Pradhan Puja. Thus devotees wishing to worship in a detailed manner should start the lesson by worshiping Bhagwati with the help of other worship methods. In this way, the inner soul is to be cursed.
One should do Bahirmatrika etc., then after meditating on Sridevi, worship Mahalakshmi etc. in a nine chambered yantra as described in the mystery, after which the recitation of Durga Saptashati with six limbs is started. Kavach, Argala, Keelak and the three secrets – these are considered to be the six parts of Saptashati. In their order – there is also a difference of opinion. In the Chidambaram Samhita, there is a law to read Argala, then to the rivet and finally to the armor. But in Yogaratnavali, the sequence of the lessons is different.
Kavachko seed in it, Argalako Power and rivet are challed rivets. Just as in all the mantras first the Beejka, then the Shaktika and lastly the Keelaka are recited, similarly here too, first the Kavach form Beej, then the Argalarupa Shaktika and lastly the Keelak form should be recited respectively. The same sequence is followed here.
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