Bhagawati Stotram | श्री भगवती स्तोत्रम

Bhagwati stotram is the hymn or prayer dedicated to Goddess Durga, she is also known as bhagwati and mother goddess. This strotam was composed by sage vyas, which highlights the virtue of goddess Durga, and her victory over evil forces, those who recite this stotra get the blessings of Goddess and also all the amenities which are available in this world becomes available for the reciters.

 

श्री भगवती स्तोत्रम

जय भगवति देवि नमो वरदे, जय पापविनाशिनि बहुफलदे । जय शुम्भ-निशुम्भ-कपालधरे, प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे ।।1।।

जय चन्द्रदिवाकर नेत्रधरे, जय पावक भूषितवक्त्रवरे । जय भैरवदेहनिलीनपरे, जय अन्धकदैत्य विशोषकरे ।।2।।

जय महिषविमर्दिनिशूलकरे, जय लोकसमस्तकपापहरे । जय देवि पितामहविष्णुनते, जय भास्करशक्रशिरोsवनते ।।3।।

जय षण्मुख सायुधईशनुते, जय सागर गामिनि शम्भुनुते । जय दु:खदरिद्रविनाशकरे, जय पुत्रकलत्रविवृद्धकरे ।।4।।

जय देवि समस्त शरीरधरे, जय नाक विदर्शिनि दु:खहरे । जय व्याधि विनाशिनि मोक्ष करे, जय वांछित दायिनि सिद्धिवरे ।।5।।

एतव्द्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि: । गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा ।।6।।

 

Bhagwati Strot

Victory to You, O Divine Goddess, My Salutations to You Who are the Giver of Boons,Victory to You O Devi, Who are the Destroyer of Sins and Bestower of Many Fruits,Victory to You O Devi, Who Wear the Heads of Sinful Demons Shumbha and Nishumbha (after slaying them),I Bow down to You O Devi, You Indeed are the Remover of Pains of Human Beings.

Victory to You O Devi, Who Wear the Sun and the Moon as Her Eyes,Victory to You O Devi, Whose Beautiful Face is Adorned by the Glow of Fire,Victory to You O Devi, Who as the Supreme Being Fused Her Body with that of Bhairava (as Ardhanarishwara),Victory to You O Devi, Who Dried up the Strength of Demon Andhaka (for his wickedness).

Victory to You O Devi, Who Crushed the Demon Mahishasura with Trident in Hand,Victory to You O Devi, Who Destroy the Sins in All the Worlds,Victory to You O Devi, to Whom Pitamaha Brahma and Sri Vishnu Bow Down.Victory to You O Devi, to Whom Sun and the Other Devas Bow Down.

Victory to You O Devi, Who is Praised by Lord Shanmukha (the Six-Faced Kartikeya) Adorned with various Weapons,Victory to You O Devi, Who is Praised by Lord Shiva seeing You Flowing towards the Ocean as river Ganga (for the welfare of mankind),Victory to You O Devi, Who Destroys All Sorrows and Poverty, Victory to You O Devi, Who Augments our Fortune by providing Sons and Wives.

Victory to You O Devi, Who Wear All the Bodies (remaining as the underlying Pure Consciousness),Victory to You O Devi, Who Bestows the Vision of Spiritual Sky (during meditation), thus Destroying the Root of our Sorrow (of spiritual ignorance),Victory to You O Devi, Who Destroy the Diseases (obstructing our spiritual progress) and finally Grants Liberation (from the delusion of samsara),Victory to You O Devi, Who thus Grants our Wishes and takes us towards the Most Excellent Siddhi (of spiritual fulfilment).

This Stotram (Hymn) is Composed by Sage Vyasa, Whoever Recites this Stotram Regularly after becoming Bodily and Mentally Clean, in his Home or Anywhere with Pure Devotion to the Goddess, Will Please the Bhagavati Devi Always.

Hindi meaning :

हे वरदायिनी देवि! हे भगवति! तुम्हारी जय हो। हे पापों को नष्ट प्रदान करने वाली और अनंत फलों को प्रदान करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो! हे शुम्भ-निशुम्भ के मुण्डों को धारण करनेवाली देवी! तुम्हारी जय हो। हे मनुष्यों को पीड़ा हरनेवाली देवी! मैं तुम्हें प्रणाम करता/करती हूं।।1।। हे सूर्य-चंद्रमारूपी नेत्रों को धारण करने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। हे अग्नि के समान दैदीप्यमान मुख से शोभित होने वाली! तुम्हारी जय हो। हे भैरव शरीर में लीन रहने वाली और अन्धकासुर का शोषण करने वाली देवी तुम्हारी जय हो, जय हो।।2।। हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, शूलधारिणी और लोक के समस्त पापों को दूर करने वाली भगवति! तुम्हारी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और इन्द्र से नमस्कृत होने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।3।। सशस्त्र शंकर और कार्तिकेयजी द्वारा वन्दित होने वाली देवी! तुम्हारी जय हो। शिव के द्वारा प्रशंसित एवं सागर में मिलनेवाली गंगारूपिणी देवी! तुम्हारी जय हो। दुख और दरिद्रता का नाश तथा पुत्र कलत्र की वृद्धि करने वाली हे देवी! तुम्हारी जय हो, जय हो।।4।। हे देवी! तुम्हारी जय हो। तुम समस्त शरीरों को धारण करने वाली, स्वर्गलोक का दर्शन कराने वाली और दुख हारिणी हो। हे व्याधिनाशिनी देवी! तुम्हारी जय हो। मोक्ष तुम्हारे करतलगत है, हे मनोवांछित फल देने वाली अष्ट सिद्धियों से सम्पन्न परा देवी! तुम्हारी जय हो।।5।। माता के कोई भी भक्त, जो कहीं भी रहकर पवित्र भाव से नियमपूर्वक इस व्यासकृत स्तोत्र का पाठ करता है अथवा शुद्ध भाव से घर पर ही पाठ करता है, उसके ऊपर भगवती सदा ही प्रसन्न रहती हैं।।6।।

 

6 Comments

  1. Thanks for such fabulous articles.

  2. Beayutiful ati sunder jay ma bhagvati

  3. ye stotra konsa puran me hai kripya bataiye

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